पैनलिस्ट चाहते हैं, कंपनी उनके खाते में पैसे जमा करवा रही है तो जमा होने दिया जाए कानून के दायरे में नहीं स्पीक एशिया
जांच एजेंसियों ने कहा कि स्पीक एशिया एक मनी सर्कुलेशन स्कीम चला रही थी जो कि कानून के दायरे में नहीं है। हालांकि मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा तीन महीने की जांच के बाद भी चार्जशीट दाखिल करने की प्रक्रिया पूरी नहीं कर पाई है। पैनलिस्ट परमिंदर सिंह का कहना है कि हमारी सभी से अपील है कि बकाया जांच के चलते भुगतान को न रोका जाए। हमारा जांच पर कोई ऐतराज नहीं है पर अदालत का फैसला आने तक हमारा भुगतान रोकना सही नहीं है। पैनलिस्ट अब विभिन्न प्रकार के प्रदर्शन, हस्ताक्षर अभियान चलाने की रणनीति पर भी काम कर रहे हैं।
स्पीक एशिया के 12 लाख से अधिक पैनलिस्ट को कई माह से कंपनी का विवाद सुलझने का इंतजार है। इनमें से १०० से अधिक पैनलिस्ट ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा कर राहत की मांग की है। गौरतलब है कि ट्राईसिटी में ही स्पीक एशिया के १ लाख से ज्यादा पैनलिस्ट हैं।
इनका कहना है कि कंपनी अगर उनके खाते में पैसे जमा करवा रही है तो उसे जमा होने दिया जाए। दरअसल खातों पर रोक होने के चलते कोई लेनदेन नहीं हो पा रहा और कंपनी की तरफ से भेजा गया पैसा भी वापस जा रहा है। इस बीच कंपनी ने पैनलिस्टों को पैसे लेकर भी कंपनी से बाहर होने का प्रस्ताव दिया लेकिन खाते फ्रीज होने के कारण यह भी नहीं हो पा रहा।
पैनलिस्टों के वकील राजीव रंजन के अनुसार कंपनी के खातों में कुछ भी जमा होने से रोका जाए लेकिन अगर कंपनी पैनलिस्टों को पैसे भेज रही है तो उसे उनके खाते में जमा किया जाए। करीब 115 पैनलिस्टों ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में स्पीक एशिया, आरबीआई और वित्त मंत्रालय को पार्टी बनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से अपना पक्ष 10 अक्टूबर तक रखने के लिए कहा है।
मई में स्थगित कर दिए थे भुगतान: आरबीआई ने 23 मई, 2011 को एक सकुर्लर जारी कर कंपनी के सभी बैंक लेन देन रोकने और सभी भुगतान स्थगित कर दिए थे जोकि पैनलिस्टों को सीधे सिंगापुर से हो रहे थे। स्पीक एशिया ने मई 2010 में भारत में कारोबार शुरू किया था। चंडीगढ़ और पंजाब में ही कंपनी के पैनलिस्टों की संख्या दो लाख से अधिक है। कई लोगों ने अपनी नौकरी छोड़ कर स्पीक एशिया का काम शुरू कर रखा था।
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